“हैल्लो..कौन?”
“प्रणाम गुरुजी, में एकलव्य
बोल रहा हुं!”
“अरे
एकलव्य..तुम! क्षमा चाहता हुं अभी थोडा बिझी हुं, बादमें बात करें?”
“नहीं
गुरुजी..फोन मत काटना प्लीझ..आज सुबह से कोशीश कर रहा था, ये दस-बारह बार कोशीश करने
के बाद आपसे बात हो पा रही है, मुझे पूरा भरोसा है की मेरा नंबर आपके सेलफोन पे सेव
तो नहीं होगा, लेकिन फिर भी ट्रुकोलरमें मेरा नाम देखते ही आप फोन काट देते होंगे!
आखिर में मेरी वाईफ के नंबर से ये कोल किया है और अन्जान नंबर समजकर आपने उठा लिया!”
“अरे
नहीं..वत्स ऐसा नहीं है..दरअसल बात ये है की……ये है की…मेरा सेल फोन…”
“बिगड
गया था? पानीमें गिर गया था? बेटरी डिस्चार्ज हो गई थी? किसी दूसरे के पास था? बोलीये
बोलीये…इसमें से कोइ बहाना है या आपने कोइ नये बहाने का आविश्कार किया है?”
“अरे
नहीं वत्स..मैं तो..बस मैं तो…”
“अरे
छोडिये बकरी की तरह में में में करना, अपना अहंकार छोड के सीधी तरह बोल क्यों नहीं
देते की आपको अपने कृत्य पर गिल्ट फिल हो रहा है!”
“……………..!”
“देखिये
गुरुजी, आज मैंने आपको आपका वो पाप याद दिलाने के लिये या आत्मग्लानि कराने के लिये
कोल नहीं किया..आपने जो कुछ किया वो तो इस पावन शिक्षण क्षेत्रमें बस डिमक लगने की
शुरूआत ही थी, आजके द्रोणाचार्य जो कर रहे है उसके सामने आपके किये गुनाह तो कुछ भी
नहीं है!”
“मेरे
गुनाह? कितने गुनाह किये मैंने की तु ऐसे बोल रहा है? बस, एक ही तो गलती की थी मैने
तेरे साथ जो किया…”
“रहने
दिजीये गुरुजी..आज के पावन दिन पर मेरा मुंह मत खुलवाईए, मेरे साथ तो आपने किया सो
किया, इसके सिवा भी न जाने कितनीबार आपने अर्जुन को ग्रेसींग मार्क्स से पास करवाने
के लिये नजाने कितनी साज़िसें रची, कितनीबार भ्रष्टाचार किया!”
“साधु…साधु…वत्स
में ये क्या सुन रहा हुं! मैं भ्रष्टाचारी? मैने साज़िसें की? क्या क्या साज़िसे? विपक्षो
की तरह बेबुनियाद आरोप मत लगा!”
“मैं
बेबुनियाद बात कभी भी नहीं करता गुरुजी, आप आज मेरा मुंह खुलवाना ही चाहते है तो सुन
लिजिये, उस दिन, पंछी की आंखवाली कसौटी जो आपने रख्खीथी उसमें भी आपने अर्जुनो को कपट
से उत्तीर्ण घोषित कर किया था!”
“क्या
बक रहे हो! सारी दुनिया जानती है की उस दिन केवल अर्जुननेही सही उत्तर दिया था और उसकी
वज़हसे उत्तीर्ण हुआ था!”
“गुरुजी…!
ये सब कहानीयां आप विदुरजी के आगे करते तो वो शायद मान भी लेते, मैं तो आपको अच्छे
से जानता हुं, मेरे आगे तो झूठ मत बोलीये! मुज़े पता है की उस दिन उस इम्तहानमें आपने
एक तो अर्जुनको जानबुज़ कर आखरी रख्खा था ताकी उसको आपके सवाल “तुम्हे क्या दिखाई दे
रहा है?” के जवाबमें ये तो पता चल जाय आगे जो सौ कौरव और उसके चार भाईओने उत्तर दिये
वो गलत है और उसको इसके सिवा कोइ उत्तर देना है!”
“लेकीन
वत्स…आखीरमें तो आखीरमें, सही उत्तर तो केवल अर्जुनने ही दिया, और मेंने उसे उत्तीर्ण
घोषीत किया इसमें कपट कहां आया?”
“अब
रहने भी दिजीये गुरुजी, खाक सही उत्तर दिया था? अपनी बारी का इन्तझार करते करते थका
हारा उब चुका अर्जुन जब बारी आई तो धनुषसे निशाना लगाने का प्रयत्न करते करते गुस्से
से “इस की मां की आंख…” ऐसा कुछ बडबडायाथा और आपने उसमें से आंख शब्द पकडकर उसे उत्तीर्ण
घोषित कर दिया!”
“तुम
ये कैसे कह शकते हो की उस दिन अर्जुन ऐसा बोला था? तुम तो उस दिन वहां थे नहीं!”
“गुरुजी
हो शकता है की उम्रके कारन आपके कान कमज़ोर हो गये हो और आपने शायद ठीक ठीक सुना ना
हो, और सही उत्तर मील गया मान लिया हो, उस दिन भले ही मैं नही था वहां, लेकीन दुर्योधन
जो बिलकुल अर्जुन के बगलमें खडा था उसने बिलकुल साफ सुना था की अर्जुनने क्या बोला
है!”
“दुर्योधन?
वो दुष्ट तुम्हे कहां मील गया?”
“वोट्सएप
पे मीला था, और कह रहा था की वो ये आपकी कपटवाली कहानी आज गुरुपूर्णिमा के दिन ही फेसबुक
और वोट्सएप पे डाल के वायरल करनेवाला है…वो तो मैने उसको समजाया और रोका वर्ना आज शाम
आते आते आपके घर के सामने मीडिया का जमावडा होता और आप आज ब्रेकिंग न्यूझ बन जाते!”
“बहोत
अच्छा किया तुमने…तुमने मुज़े बचा लिया…वर्ना में कहींका नहीं रहता…लेकीन वत्स एक बात
बता, तुमने उसे क्यों रोका? तुमने मुझे क्यों बचाया, जबकी मैंने तुम्हारे साथ इतना
बडा अन्याय किया है?”
“कोमनसेन्स
की बात है गुरुजी..अगर हमने जिस युनिवर्सिटीसे पढाई की है उस युनिवर्सीटी की फर्ज़ी
डीग्री का मामला बाहर आये तो हमारी खुद की डीग्री भी शक के घेरेमें आ जाये! किन्तु
गुरुजी, एक बात सच सच बताईये उस दिन अर्जुनने जो बोला था वो आपने वाकई नहीं सुना था
या जानबुझ कर अनसुना किया था?”
“अब
तु सबकुछ जान ही गया है तो तुजसे झुठ बोलने का कोइ मतलब ही नहीं है…किसीको बोलना मत,
बात को अपने तक ही रखना, मै तुज़े ओफ ध रेकोर्ड बता रहा हुं की हां, उस दिन मैने बिलकुल
साफ सुना था अर्जुन जो बोला था!”
“तो
फिर गुरुजी आपने उसको उत्तीर्ण क्यूं किया?”
“अब
तुजे़ क्या बताउं! उस बिना बाप के बच्चों के प्रति भिष्मका पक्षपात तो तुभी जानता है!
कैसे भी करके उस पांच निकम्मोमेंसे मुज़े एक को पास करना ही था वरना हमारे महाविद्यालय
को राज्यसे मीलनेवाली ग्रान्ट बंध हो जाती, सब जानते है की परदे के पीछे से सत्ताके
सुत्र भिष्मके हाथ में थे!”
“लेकीन
गुरुजी, मेरी क्या गलती थी? आपने मेरे साथ क्यूं ऐसा किया?”
“मत्त
मारी गई थी मेरी उस दिन! जब तु पहलीबार एडमीशन के लिया आया तो तेरा हुलिया देख के मुज़े
लगा की तु मेरी फीस अफोर्ड नहीं कर पायेगा, उस लिये मैनें “सिर्फ क्षत्रियों को धनुर्विद्या
शीखाने” का बहाना करके तुज़े भगा दिया, पर तेरी जीद ऐसीथी की मेरी वेब साइट डबल्यु डबल्यु
डबल्यु डोट धनुर्विद्या डोट कोम से सारे लेशन्स और वीडियो डाउनलोड करके, प्रेकटीस करके
तुने धनुर्विद्या प्राप्त की!”
“लेकीन
गुरुजी, मैंने पायरेटेड वीडियो से तो नहीं शीखा! ऒफिसीयली जरूरी चार्जीस भरके वहां
से वीडियो डाउनलोड किये थे!”
“हां
वत्स, वो भी मुज़े पता है, जब जब तेरे क्रेडीटकार्ड से फीस की अमाउन्ट मेरे अकाउन्टमें
ट्रान्सफर हुई तब तब मेरे मोबाईल पे मेसेज आये थे..”
“तो
गुरूजी वो क्या बजही थी की आपने गुरुदक्षिणा का कपट करके मुज़े दाहिने हाथ का अंगूठा
छीन लिया?”
“मुजसे
बहोत बडा गुनाह हो गया मेरे बच्चे! मैं स्वार्थमें अंधा हो गया था…मुज़े लगा था की अगर
लोगों में ये बात फैल गई की मेरे पास प्रत्यक्ष आके शीखनेवाले से ज्यादा अच्छे से मेरे
वेबसाइट से ओनलाइन शीखा जा शकता है तो फिर मेरी युनिवर्सीटी को ताला लगाने की नौबत
आ जाये! मैं सचमुच शरमींदा हुं, मेरे किये कृत्य के लिये, मैं माफीके काबिल तो नहीं
हुं फिर भी हो शके तो माफ कर देना…”
“अरे
अरे..गुरुजी…आप मुज़से माफी मांग के मुज़े पापी मत बनाईए..मैने आज गुरुपूर्णिमा के दिन
आपसे माफी मंगवाने के लिये नहीं पर आपका शुक्रिया अदा करने के लिये आपको फोन किया है!”
“शुक्रिया?
मेरा शुक्रिया? क्यूं मेरा मखौल उडा रहे हो!
मैने तेरे साथ जो किया उसके बाद तु मेरा शुक्रिया अदा क्यूं करेगा?”
“बिलकुल
होशोहवास में सच बोल रहा हुं गुरुजी, आज गुरुपूर्णिमा के दिन आपका शुक्रिया अदा करने
के लिये ही फोन किया है!”
“मुज़े
कुछ समज़में नहीं आ रहा…तु क्यूं मेरा शुक्रिया अदा करेगा?”
“देखिये
गुरुजी, उस दिन आपने कपट करके गुरुदक्षिणा के नाम पे मेरे दांये हाथ का अंगूठा छिन
लिया ठीक है?”
“हां
तो मैंने बोला तो सहीं की मैं शरमींदा हुं, मुज़े माफ कर दे तो फिर उस बात को दोहरा
के ताना क्यूं मार रहा है?”
“नहीं
गुरुजी मैं बिलकुल ताना नहीं दे रहा हुं, मैं सच्चे दिलसे आपका शुक्रिया अदा करता हुं
क्यूंकी दांये हाथ का अंगूठा नहीं होनीकी वजह से, घरमें मटर छिलना, सब्जी काटना. सूईमें
धागा पीरोना ऐसे ऐसे बोरिंग काम से मुज़े छटकने का बहाना मील गया है!”
“ओह,
ये बात है? लेकिन फीर भी, इसकी वज़हसे तुम्हारी धर्मपत्नी तो जरूर मुज़ पे नाराज़ होंगी
और हररोज मुज़े कोसती होगी!”
“अरे
नहीं नहीं गुरुजी..वो तो बिलकुल नाराज़ नहीं है, वो तो आप पे बहोत ही प्रसन्न है और
आपको याद कर कर के रोज दुआएं देती है!”
“है?
ऐसा कैसे हो शकता है?”
“बहोत
सिम्पल लोजीक है गुरुजी, में स्मार्ट फोन तो इस्तमाल करता हुं लेकिन दाहिने हाथ का
अंगूठा नहीं होनेकी वजह से टचस्क्रीन फोन के साथ ज्यादा चीपकके नहीं रह शकता, वोट्सएप,
फेसबुक का मर्यादित इस्तमाल कर शकता हुं, चेटींग वगैरह मेरे लिये बहोत मुश्कील है,
और इसकी वजह से मीरी बीवी खुश है की आपने मेरा अंगूठा ले लिया!”
“हां…..ये
तो बिलकुल सही बात है! ये तो कहानी घर घर की है, मेरे घरकी ही बात है, मेरे अस्वत्थामाथी
बीवीको हररोज ये फरियाद रहती है की उसका पति उससे ज्यादा मोबाइल के साथ लगा रहता है!”
पहली बार लिखा है लेकिन आप पहले से लिखते हैं =, बहुत उत्तम है
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